अधिकारी किस तरह से मैनेजमेंट को सब्जबाग दिखा कर अपना उल्लू साधते हैं इसका एक किस्सा है।
बात करीब तीस वर्ष पहले एक टीवी कंपनी की है , उस समय कम्पनी की दिल्ली की बिक्री लगभग 25 लाख़ महीने की थी , मार्केटिंग स्टाफ पर हर समय कंपनी की सेल बढ़ाने का दबाव रहता है। इसीलिए वे तरह - तरह की स्कीम लाते रहते थे। एक बार उन्होंने एक नई स्कीम डीलरों को विदेश यात्रा करवाने की, लांच की। यह स्कीम दो महीने के लिए थी और इस स्कीम में दिल्ली की सेल 25 लाख़ महीना से बढाकर 50 लाख करनी थी यानि कि दो महीने में एक करोड़ की सेल करना था , सभी डीलरों को टारगेट दे दिया गया कि जो डीलर इसमें सफल हो जायेंगे उन्हें कंपनी के खर्च पर हांगकांग घुमाने ले जाया जायगा। आज से तीस वर्ष पहले हांगकांग घूमने जाना बड़ी बात हुआ करती थी। कई डीलरों के पास उस समय पासपोर्ट तक नहीं थे , उनके पासपोर्ट बनवाये गए। मैनेजमेंट ने भी इस स्कीम को अप्रूव कर दिया क्योकि कम्पनी की सेल दोगुना हो रही थी। अब मार्केटिंग वाले बोले कम्पनी की सेल दोगुना हो रही है तो डीलरों की क्रेडिट लिमिट बढाओ। मैनेजमेंट ने वह भी अप्रूव कर दी ।
दो महीने पूरा होते - होते मार्केटिंग वालो ने क्रेडिट पर माल देकर ज्यादातर डीलरों का टारगेट पूरा करवा दिया। अब क्या था, स्कीम सक्सेस फुल हुई , सभी बहुत उत्साहित थे। मार्केटिंग टीम ने फटाफट सबके टिकेट बुक करवाये और डीलरों को लेकर एक हफ्ते की हांगकांग की सैर के लिए निकल पड़े।
वहां से लौट के आने बाद सारे के सारे बड़े खुश होकर अपनी पीठ थपथपा रहे थे। मैनेजमेंट भी खुश , कमाल कर दिया लड़को ने , दो महीने में कम्पनी के सेल दोगुनी हो गई। अब अन्य राज्यो की मार्केटिंग टीम भी इस स्कीम को लांच करने में लग गई।
अब बारी थी मेरी , स्कीम खत्म होने के दो महीने के बाद ऑडिट शुरू किया , तो पता लगा अगले दो महीने में कंपनी की सेल घट कर 50 % ही रह गई। मतलब यह कि जहाँ कंपनी हर महीने अपने टीवी 25 लाख के बेचती थी वह अब केवल 10 से 12 लाख के बेंच रही है इसके अतिरिक्त डीलरों पर उधार अलग से बढ़ गया। मैने इसे बेहतर तरीके से समझाने के लिए ग्राफ पेपर का सहारा लिया , एक बढ़िया सा चार्ट तैयार करके मैनेजमेंट के सामने रखा गया। तब जाकर मार्केटिंग टीम का खेल समझ में आया कि क्रेडिट लिमिट बढ़ा कर स्टॉक को डीलरों के पास डंप कर दिया गया , कंपनी को बताया गया सेल बढ़ रही है और इस तरह से सारे के सारे डीलरों के साथ कम्पनी के खर्च पर हांगकांग की सैर कर आये। कंपनी को क्या मिला करीब 4 लाख रूपये का अतिरिक्त खर्च।
कुछ ऐसा ही रेलवे में हो रहा है, अधिकारी यह तो बता रहे हैं कि फ्लेक्सी फेयर स्कीम से रेलवे को तीन महीने में 130 करोड़ का फायदा हुआ है और इसीलिए उसको जारी रख रहे हैं। लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि इस स्कीम की वजह से जो सीटे खाली रह गई, उनसे कितने हजार करोड़ का नुकसान रेलवे को हुआ है।
अब कोई मेरे जैसा होता तो पहले तो यह डाटा निकलवाता कि पिछले तीन महीने में कितनी सीटे खाली रह गई और उनसे कितने किराये का नुकसान हुआ. उसके बाद सभी को बर्खास्तगी का नोटिस थमा देता। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
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