Thursday 11 April 2013

E.S.I. एक टैक्स या सुविधा

E.S.I.  एक टैक्स या सुविधा 
आज के न्यूज पेपर में  खबर पढ़ी कि श्रम संगठनो की मांग पर सरकार ई एस आई सुविधा  की पात्रता 15000/-  से बढ़ा  कर  25000/-करने का विचार कर रही है। मतलब यह कि एक income tax देने वाला भी मजदुर की श्रेणी में आएगा। हर साल उसके खाते से 19500/- रूपये सरकार की जेब में जायेंगे। इसके अतिरिक्त income tax  तो जो बनता है वह तो देना ही पड़ेगा। 
एक बात और है कि Employee चाहें E.S.I की सेवा लेना चाहे या ना लेना चाहे उसका पैसा सरकारी खाते में जमा हो जायेगा और इसका कोई refund नहीं मिलेगा। 
दूसरी बड़ी बात यह है कि एक आदमी का वेतन तो 15000/- है तब उसके वेतन से   975/-   E.S.I.   के खाते में जमा होते हैं और दुसरे आदमी को   5000/-  वेतन मिलता है तब उसके खाते से 325/-  E.S.I.   के खाते में जमा होते हैं पर बीमार होने पर इलाज दोनों को एक ही जैसा होता है दोनों को एक ही लाइन में खड़ा होना पड़ता है। मजदूर वर्ग का कर्मचारी तो फिर भी इसका लाभ उठाता है पर आफिस में काम करने वाले बाबू  लोग ESI  hospital   में जाना बहुत कम ही पसंद  करते हैं। अब मजदूरों को तो 15000/- से  25000/- तनख्वाह मिलती नहीं है। इस समय तो पढ़े- लिखे प्रोफेशनल डिग्री होल्डर भी इस तनख्वाह पर काम कर रहे होते हैं। मुझे तो नहीं लगता इनमे से कोई भी वहां जाना पसंद करता होगा। अब इनका सारा पैसा बट्टे खाते में सरकारी खजाने में जमा हो जाएगा। 
अभी एक कर्मचारी को 15000/- रुपये मिलते है यानी कि  वह  हर साल 11700/- E.S.I. का भुगतान करता है। काफी बड़ी रकम है। चाहे वह एक बार भी  E.S.I. न गया हो. देखा जाय तो एक तरह की जबरदस्ती थोपी गई mediclaim policy है. जहाँ premium सरकार तय करती है. यहाँ आपको अधिकार नहीं है कि आप कितना प्रीमियम भरना चाहते हैं। देखा जाय तो जितनी भी बीमा  कम्पनी है सभी मोटा मुनाफा कमा  रही हैं। L.I.C. ही को देख लो कनाट प्लेस में सबसे ज्यादा इसकी ही बिल्डिंग हैं। 
पिछले कई दिनों से मन में विचार आ रहा था कि यह एक सुविधा है या सरकारी टैक्स जो कि Employee  एवं Employer से जबरन वसूला जाता है. 
कहने के लिए तो सरकार ने इसे सुविधा का नाम दिया है पर मै यह समझता हूँ कि यह सुविधा कम टैक्स ज्यादा है। 
न्यूज पेपर में अक्सर E.S.I. के विज्ञापन छपते रहते हैं क्योकि उनकी कमाई हो रही है वही भविष्यनिधि विभाग (P.F.) का इक्का - दुक्का कोई छोटा सा विज्ञापन देखने को मिलता है। क्योकि वहां पर तो कर्मचारी को ब्याज सहित उसका पैसा वापस करना होता है. 
मुझे याद है 2003 में E.S.I  , 6500 या 6500 से कम वेतन पाने वालो पर लागू थी फिर इसे बढाकर   2004 में 7500/- हो गई उसके कुछ समय बाद  10000/- हुई लगभग 35%  से भी कम , फिर 2010  में  50% की बढ़ो त्तरी  की गई और   15000  तक वेतन पाने वाले E.S.I  रूपी टैक्स का भुगतान करने लगे। अबकी बार लगभग   70% की बढ़ोत्तरी की कवायद चल रही है.हर बार पर्सेंटेज  बढ़ता जा रहा है.  क्योकि सरकार जानती है उसकी जेब में तो आना ही आना है , बढ़ाये जाओ वसूले जाओ जितना ज्यादा से ज्यादा वसूल किया जा सके. 
जबकि पिछले कितने ही सालो से प्रोविडेंट फंड में  कटौती में कोई बदलाव नहीं आया है वह 6500/ पर ही टिका हुआ है. 
E.S.I में अगर किसी ने दो दिन या हफ्ते भर ही काम किया हो उसका भी टैक्स काटना जरुरी है. इतने कम समय में न तो उसकी E.S.I की ओपचारिक्ताये (formality) पूरी होती है और न ही उसके परिवार का कार्ड बन पायेगा परन्तु टैक्स तो काट कर जमा करना अनिवार्य है. 
इसके  बाद E.S.I इन्स्पेक्टर आडिट करने के लिए आते है अब अगर किसी ने जॉब वर्क  करवाया है, या कोई बहरी आदमी से मशीन रिपयेर करवाई है या डेली वैज का भुगतान किया है, तब उसको उस सारे भुगतान पर E.S.I  जमा करवानी पड़ेगी। सवाल उठता है जिस काम को हुए दो- तीन साल ही चुके हैं अब उसको किये गए भुगतान पर E.S.I काट कर जमा करवाने का मतलब  क्या है. उसको तो कोई E.S.I  का लाभ मिला नही और न हि  मिलेगा।
कुल मिला कर यही कह सकते हैं कि गोल माल है भाई सब गोल माल है. 


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